मराठा आरक्षण: मुंबई में अनिश्चितकालीन अनशन, आजाद मैदान से उठा सबसे बड़ा सवाल

मराठा आरक्षण: मुंबई में अनिश्चितकालीन अनशन, आजाद मैदान से उठा सबसे बड़ा सवाल

आजाद मैदान से दबाव की राजनीति, शहर थमा तो बहस तेज हुई

शुक्रवार, 29 अगस्त 2025 की सुबह मुंबई ने वह नजारा देखा जो सरकार को जल्द फैसले लेने पर मजबूर कर देता है। मराठा कोटा आंदोलन का चेहरा मनोज जरांगे पाटिल आजाद मैदान में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए। जलना से निकला उनका काफिला सैकड़ों गाड़ियों के साथ मुंबई पहुंचा तो दक्षिण और मध्य मुंबई की धड़कनें थमती दिखीं। चर्चगेट से सीएसटी और मरीन लाइंस के बीच हजारों समर्थकों की मौजूदगी ने दफ्तर जाने वालों की चाल रोक दी।

जरांगे की मांग साफ है—मराठा समुदाय को ओबीसी श्रेणी में 10% आरक्षण। मंच से उन्होंने कहा, 'मर जाऊंगा, पर इस बार पीछे नहीं हटूंगा। जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं, मुंबई नहीं छोड़ेंगे।' उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार ने सहयोग नहीं किया, इसलिए जनता के बीच आकर दबाव बनाना मजबूरी है।

मुंबई पुलिस ने सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक सीमित और शांतिपूर्ण प्रदर्शन की इजाज़त दी थी—अधिकतम 5,000 लोग और सिर्फ पाँच वाहन। पर हकीकत में भीड़ दस हजार के पार चली गई। भीड़ के सबसे बड़े गुच्छे मरीन ड्राइव के एयर इंडिया बिल्डिंग सिग्नल, चर्चगेट और सीएसटी के आसपास दिखे। कई जगह लोग सड़कों के बीचोंबीच चलते रहे, ट्रैफिक पुलिस की अपीलों के बावजूद।

नतीजा—दफ्तरों का समय निकल गया, बच्चे स्कूल बसों में फंसे रहे और लोकल ट्रेन स्टेशनों पर ठसाठस भीड़। सीएसटी पर रात भर से रुके जत्थों की वजह से प्लेटफॉर्म भरे रहे। भीड़ को नियंत्रित करने और सुरक्षा संभालने के लिए 1,500 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए। रेलवे की ओर से 40 अतिरिक्त आरपीएफ और महाराष्ट्र सिक्योरिटी फोर्स के 60 जवान उतारे गए।

पुलिस की तय सीमा टूटने के बावजूद प्रशासन ने अनशन जारी रहने दिया। संकेत साफ हैं—यह टकराव एक दिन का नहीं है। जरांगे के समर्थक राशन-पानी के साथ आए हैं, एक हफ्ते तक टिकने की तैयारी का दावा सामने आया। मंच से लहजा सख्त था—'गोली भी चलानी हो तो चला लो, इस बार वापसी नहीं।'

राजनीतिक प्रतिक्रिया भी उतनी ही तेज रही। शिवसेना (उद्धव) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि मराठा समाज को पहले भी इस्तेमाल कर धोखा दिया गया है, अब सरकार तुरंत संवाद शुरू करे। मौजूदा सत्ता गठबंधन पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा—जब आप ही सत्ता में हैं तो निर्णय भी आप ही लें। दूसरी ओर, जरांगे ने महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर 'सहयोग न करने' का आरोप दोहराया और इसे सरकार के लिए 'सोने का मौका' बताया—ओबीसी में आरक्षण देकर समाज का विश्वास जीतने का।

मांगें क्या हैं, कानूनी पेच कहाँ है और आगे का रास्ता कैसा दिखता है

जरांगे पाटिल की मुख्य शर्त—मराठों के लिए ओबीसी श्रेणी में 10% आरक्षण—संविधान और अदालती फैसलों के कारण जटिल हो जाती है। 1992 के सुप्रीम कोर्ट के इंड्रा साहनी (मंडल) फैसले ने आरक्षण की कुल सीमा 50% तय की थी। अपवाद तभी संभव है, जब राज्य असाधारण और ठोस आंकड़ों से 'अत्यधिक विशेष परिस्थितियाँ' साबित करे। यही कारण है कि जरांगे का आंदोलन अब सीधे केंद्र की उस '50% सीमा' को हटाने की मांग से जुड़ गया है।

महाराष्ट्र में इससे पहले 2018 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) के नाम से मराठों के लिए अलग कानून लाया गया था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसमें कटौती कर आंशिक रूप से बरकरार रखा, लेकिन मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। अदालत ने कहा—सबूत अपेक्षित मानक नहीं पूरे करते और कुल आरक्षण 50% से ऊपर नहीं जा सकता।

बीच में केंद्र ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को 10% आरक्षण दिया, जिसे 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने मान्य ठहराया। पर यह आरक्षण सामाजिक-पिछड़ेपन पर आधारित नहीं, आर्थिक मानदंड पर है, इसलिए ओबीसी ढांचे से अलग है। यही फर्क मराठा कोटा को कानूनी चुनौती देता है—या तो ओबीसी में समावेशन का रास्ता मजबूती से बनाएं, या 50% सीमा के सवाल को संसद/अदालतों के जरिए सुलझाएं।

राज्य सरकार ने पिछले महीनों में एक रास्ता और तलाशा—ऐतिहासिक राजस्व अभिलेखों में 'कुर्मी/कुंभी' दर्ज मराठा परिवारों को ओबीसी का प्रमाणपत्र देना। मराठवाड़ा सहित कुछ इलाकों में ऐसे दस्तावेज जुटाने की कवायद चली। पर ओबीसी संगठनों का बड़ा हिस्सा इस पर ऐतराज जताता रहा—कहता है, समावेशन होगा तो मौजूदा ओबीसी कोटे का हक घटेगा। जरांगे यही चाहते हैं कि समावेशन हो तो अलग उप-कोटा तय हो, या कुल सीमा बढ़े ताकि हिस्सेदारी घटे नहीं।

जरांगे के मंच से आज जो बातें दोहराई गईं, उन्हें सरल भाषा में यूं समझिए:

  • ओबीसी श्रेणी में मराठों के लिए 10% आरक्षण का स्पष्ट प्रावधान।
  • कुल आरक्षण पर 50% की सीमा हटाने या उससे ऊपर जाने का संवैधानिक/कानूनी समाधान।
  • 'कुंभी' प्रविष्टि के आधार पर प्रमाणपत्रों की प्रक्रिया तेज और समयबद्ध हो।
  • सरकार और आंदोलन के बीच लिखित समझौता, तय समयसीमा और जवाबदेही के साथ।

कानूनी तौर पर आगे के विकल्प तीन दिशाओं में दिखते हैं। पहला, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग से ताज़ा, व्यापक सोशल-इकोनॉमिक डाटा लेकर ओबीसी में समावेशन का मजबूत केस बनाया जाए और अदालत की कसौटी पर खरा उतारा जाए। दूसरा, कुल आरक्षण सीमा का मुद्दा संसद/संवैधानिक संशोधन के जरिए संबोधित किया जाए—यह केंद्र के बिना संभव नहीं। तीसरा, ओबीसी के भीतर उप-श्रेणीकरण कर अलग हिस्सा तय करने का मॉडल अपनाया जाए, ताकि मौजूदा OBC कोटा का संतुलन भी बना रहे—हालांकि इसके भी अपने कानूनी इम्तिहान हैं।

मैदान की बारीक तस्वीर भी कम अहम नहीं। आजाद मैदान में भीड़ अनुशासित रहने की अपील बार-बार हुई, पर सड़कों पर दबाव बना रहा। चर्चगेट और मरीन ड्राइव की सर्विस लेन तक प्रभावित हुईं। ऑफिस जिलों—फोर्ट, नरिमन पॉइंट और बल्लार्ड एस्टेट—में मौजूद लोगों ने टैक्सी-ऑटो तक पाने में मुश्किल बताई। कई निजी दफ्तरों ने कर्मचारियों को 'वेट एंड वॉच' एडवाइजरी दी।

प्रशासन ने सुरक्षा पर फोकस रखा—1,500 से ज्यादा पुलिसकर्मी, भीड़-नियंत्रण बैरिकेडिंग, मेडिकल टीमें और मोबाइल कंट्रोल रूम तैनात रहे। रेलवे ने स्टेशनों के बाहर अतिरिक्त कतार प्रबंधन लगाया। पुलिस की शर्तें टूटने के बावजूद, अनशन जारी रखने देना इस इशारे के साथ आया कि बातचीत की खिड़की खुली है, बस मंच पर सहमति का फॉर्मूला चाहिए।

राजनीतिक तौर पर यह टकराव सत्ता और विपक्ष दोनों की परीक्षा है। शिवसेना (उद्धव) ने सरकार को तत्काल संवाद की नसीहत दी। जरांगे ने सीधे-सीधे कहा—यह 'गोल्डन चांस' है, मुख्यमंत्री और दोनों डिप्टी सीएम चाहें तो भरोसा जीत सकते हैं। सवाल यही है कि भरोसा किस कीमत पर और किस रोडमैप से—ओबीसी समावेशन, 50% सीमा पर केंद्रीय कदम या अलग उप-कोटा?

आंदोलन का यह चरण केवल सड़क और मैदान का नहीं, अदालत और आयोग के कागज़ों का भी है। कोई भी फैसला—चाहे समावेशन हो, अलग श्रेणी हो या सीमा में बदलाव—तभी टिकेगा जब डेटा, सर्वे और औचित्य मजबूत होंगे। यही वजह है कि जरांगे डेटा-ड्रिवन समाधान की मांग के साथ राजनीतिक दबाव भी बढ़ा रहे हैं।

फिलहाल, आजाद मैदान आंदोलन का nerve centre बना हुआ है। भीड़ ने साफ कर दिया है—वे लंबा डेरा डालने आए हैं। सरकार ने भी संकेत दिया है—अनशन खत्म कराने की जल्दबाज़ी से ज्यादा, पहले बातचीत। और इसी खींचतान के बीच, मुंबई रोज सुबह उठकर वही बड़ा सवाल दोहराती है—मराठा आरक्षण पर निर्णायक कदम आखिर कब और कैसे?

17 Comments

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    Shruthi S

    अगस्त 30, 2025 AT 09:50
    ये अनशन देखकर दिल भर गया... इंसानियत का एक अहसास हुआ। बस थोड़ा सा न्याय मिल जाए तो जिंदगी बदल जाएगी। ❤️
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    Neha Jayaraj Jayaraj

    सितंबर 1, 2025 AT 07:23
    अरे यार ये सब तो पुरानी कहानी है! 2018 में भी ऐसा ही हुआ था, फिर क्या हुआ? सरकार ने फिर से झूठ बोला! 😤 अब तो गोली चलाने का डर भी नहीं लग रहा... बस एक बार देखो कि कौन टिकता है! 🤬🔥
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    Disha Thakkar

    सितंबर 2, 2025 AT 02:19
    मराठा आरक्षण? ओबीसी के अंदर बैठने का मतलब है कि आप अपने असली इतिहास को भूल रहे हैं। आपका वर्ग इतना शक्तिशाली है कि आपको आरक्षण की जरूरत नहीं... ये सब सिर्फ राजनीति का खेल है। 🙄
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    Abhilash Tiwari

    सितंबर 3, 2025 AT 16:21
    मुंबई की गलियों में जब भीड़ खड़ी हो जाए, तो ये सिर्फ एक आरक्षण का मुद्दा नहीं होता... ये तो एक पूरे समाज की सांस लेने की आवाज़ है। जरांगे की आंखों में दर्द है, और हम सब उसे देख रहे हैं। 🕊️
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    Anmol Madan

    सितंबर 4, 2025 AT 05:47
    अरे भाई ये तो बहुत अच्छा हुआ! अब तो लोगों को पता चल गया कि बैठकर बात करने से कुछ नहीं होता। मैं भी अगले हफ्ते आजाद मैदान जा रहा हूं। चाय ले जाऊंगा 😎
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    Shweta Agrawal

    सितंबर 5, 2025 AT 03:05
    मुझे लगता है कि सबको थोड़ा समझना चाहिए ना अगर हम सब मिलकर बात करें तो कुछ न कुछ निकल जाएगा बस थोड़ा धैर्य रखें
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    raman yadav

    सितंबर 6, 2025 AT 11:21
    सुप्रीम कोर्ट ने 50% क्यों लगाया? क्योंकि ये भारत नहीं बल्कि एक ब्रिटिश नियम है! जब तक हम अपने संविधान को अपने तरीके से नहीं समझेंगे तब तक ये लड़ाई चलती रहेगी। आरक्षण नहीं, अधिकार चाहिए! 🌍
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    Ajay Kumar

    सितंबर 6, 2025 AT 23:02
    ये सब एक बड़ा फर्जी आंदोलन है। तुम्हारे लोगों के पास नौकरियां हैं, बिल्डर हैं, बैंकर हैं... अब आरक्षण चाहते हो? ये तो अंग्रेजों का वो बुरा तरीका है जिससे भारत को तोड़ा गया। तुम अपनी जगह बनाओ, आरक्षण की जरूरत नहीं।
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    Chandra Bhushan Maurya

    सितंबर 8, 2025 AT 17:34
    देखो भाई, ये आंदोलन सिर्फ आरक्षण के बारे में नहीं है... ये तो एक छोटे से इंसान की आत्मा की आवाज़ है जो अब तक कभी नहीं सुनी गई। जरांगे अपनी जान दे रहे हैं, और हम सब बस फोन चला रहे हैं। ये न्याय का नाम है, नहीं तो बस एक दर्द है। 💔
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    Hemanth Kumar

    सितंबर 9, 2025 AT 09:31
    संविधान की व्याख्या के आधार पर, आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत एक स्थिर न्यायिक निर्णय है जिसे केवल संसदीय संशोधन द्वारा ही बदला जा सकता है। अतः राज्य स्तरीय प्रयासों की सीमा अत्यंत सीमित है।
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    kunal duggal

    सितंबर 10, 2025 AT 22:03
    डेटा-ड्रिवन गवर्नेंस की दृष्टि से, यदि एमएसएसईबीसी के अनुसार मराठा समुदाय के लिए एसईबीसी डाटाबेस में डिप्रेशन इंडेक्स का विश्लेषण किया जाए, तो ओबीसी समावेशन के लिए एक स्ट्रॉन्ग केस बनाया जा सकता है। यह एक पॉलिसी इंजीनियरिंग चैलेंज है।
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    Ankush Gawale

    सितंबर 12, 2025 AT 09:12
    हर कोई अपनी बात रख रहा है... लेकिन क्या हम इस बात पर एकमत हो सकते हैं कि ये अनशन एक बहुत बड़ा दर्द है? हम सब इसे सुन रहे हैं, लेकिन क्या कोई जवाब दे रहा है?
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    रमेश कुमार सिंह

    सितंबर 13, 2025 AT 12:17
    जब एक इंसान भूख से मर रहा हो, तो उसकी मांग आरक्षण नहीं, इंसानियत होती है। ये आंदोलन एक आत्मा का रोना है... और जब एक आत्मा रोए, तो दुनिया सुन जाती है। ये सिर्फ मराठा नहीं, हम सब की लड़ाई है। 🌅
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    Krishna A

    सितंबर 13, 2025 AT 22:34
    तुम सब इतने भावुक क्यों हो? ये तो बस एक वर्ग है जो अपना बाजार बनाना चाहता है। जब तक तुम अपने बाप की नौकरी नहीं छोड़ोगे, तब तक ये आरक्षण तुम्हारे लिए नहीं है।
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    Jaya Savannah

    सितंबर 15, 2025 AT 17:59
    अनशन? बस एक ट्रेंड है जो ट्विटर पर चल रहा है। अगर मैं भी भूख रहूंगी तो क्या मुझे भी 10% मिलेगा? 😒
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    Gowtham Smith

    सितंबर 16, 2025 AT 20:47
    आरक्षण के नाम पर देश बंट रहा है। ये न्याय नहीं, विभाजन है। भारत को एक देश बनाना है, न कि समुदायों के टुकड़े करना।
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    Shivateja Telukuntla

    सितंबर 17, 2025 AT 01:36
    मैं आजाद मैदान गया था। लोग शांत थे, गाने गा रहे थे, बच्चों को खाना दे रहे थे। ये कोई विद्रोह नहीं, ये एक समुदाय की शांत जिद है।

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