रूसी तेल पर ट्रंप का 25% टैरिफ भी नहीं रोक पाया भारत, सबसे बड़ी तेल कंपनी ने दिखाई हिम्मत

रूसी तेल पर ट्रंप का 25% टैरिफ भी नहीं रोक पाया भारत, सबसे बड़ी तेल कंपनी ने दिखाई हिम्मत

रूसी तेल पर भारी टैक्स के बावजूद भारत की मजबूती

अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने 27 अगस्त 2025 से भारत पर रूसी तेल आयात को लेकर 25% अतिरिक्त टैरिफ थोप दिया। वजह- रूस की यूक्रेन संबंधी गतिविधियों पर अमेरिका का गुस्सा और उसे लेकर घोषित 'नेशनल इमरजेंसी'। कहा गया कि इससे रूस की अर्थव्यवस्था को मदद करने वाले देशों को सबक मिलेगा। लेकिन हैरानी की बात यह है कि रूसी तेल भारत की ऊर्जा जरूरतों का न केवल 35 से 40 प्रतिशत हिस्सा ही पूरा करता है, बल्कि भारत की सबसे बड़ी ऑयल कंपनी साफ कह चुकी है कि ये टैरिफ उनकी रणनीति पर कोई फर्क नहीं डाल पाएगा।

साल 2025 के शुरू के छह महीनों में रूस ने भारत को रोज़ाना करीब 1.75 से 1.8 मिलियन बैरल कच्चा तेल सप्लाई किया। भारत की सरकारी और निजी रिफाइनरियों ने जहाँ लागत बढ़ने के बावजूद भी रणनीति बदलने से इनकार कर दिया, वहीं सरकारी तेल कंपनी के टॉप अफसरों ने साफ किया कि 'जितना फायदेमंद रहेगा, उतना रूसी तेल खरीदते रहेंगे'। उनका तर्क है कि अंतरराष्ट्रीय मार्केट में उपलब्ध रूसी तेल की कीमत इतनी आकर्षक है कि ऊपरी टैक्स झेलने के बाद भी कई दूसरी जगह से तेल खरीदना महंगा ही पड़ेगा।

अमेरिका की नाराजगी और दरार की असल वजहें

अमेरिका की नाराजगी और दरार की असल वजहें

अगर आप सोच रहे हैं कि चाइना रूस का सबसे बड़ा ऑयल खरीदार होते हुए भी अमेरिकी गाज सिर्फ भारत पर क्यों गिरी? तो जवाब है- ये मामला सिर्फ यूक्रेन या रूस को लेकर नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन दरअसल भारत से कई ट्रेड डील्स और राजनयिक बातचीतों में बनती पटरी से तंग था।

  • अमेरिका-भारत ट्रेड डील्स में महीनों से ठनी हुई थी, आगे बढ़ने की रफ्तार धीमी थी।
  • पिछले कुछ महीनों में भारत और अमेरिका के बीच पाकिस्तान और कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी बयानबाजी हुई।
  • यूक्रेन युद्ध में अमेरिका चाहता था कि भारत रूसी तेल ले कर मास्को की कमाई न बढ़ाए, लेकिन भारत खुलकर अलग राह पकड़ चुका है।

यानी रूसी तेल पर टैरिफ लगाने का फैसला ट्रंप की राजनीति के लिए भी सटीक मौका बन गया। भारत को दबाव में लेने के लिए ये फैसला कई तरह से सूट करता था- व्यापार, राजनयिक घोषणाएं और चीन के बढ़ते कद की चुनौती।

तेल सेक्टर के जानकारों की मानें तो इस टैरिफ के बाद भारत के पास विकल्प हैं- अगर वो रूसी तेल लेना बंद करे तो उसे मध्य पूर्व, अफ्रीका या अमेरिका से इसे महंगे दामों पर लेना होगा। लेकिन ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने फिलहाल रूसी तेल ही अपनी मुख्य प्राथमिकता बना रखा है।

10 Comments

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    Shruthi S

    अगस्त 16, 2025 AT 12:12

    ये टैरिफ तो बस एक धमकी थी 😅 भारत तो हमेशा से अपनी राह पर चला है, अमेरिका की बात सुनकर नहीं चलता। रूसी तेल सस्ता है, लोगों की जेब बचती है, इतना साफ़ है कि आँखें बंद करके भी समझ आ जाए।

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    Neha Jayaraj Jayaraj

    अगस्त 18, 2025 AT 04:52

    अरे भाई 😱 ये तो बिल्कुल अमेरिका का एक बड़ा फेक न्यूज़ है! ट्रंप ने तो भारत को दबाने के लिए ये सब बनाया है, क्योंकि हमने चीन के साथ जो ट्रेड किया, उसने उनकी नींद उड़ा दी 🤫 और अब रूसी तेल लेने पर टैरिफ लगाने का बहाना बना रहे हैं। ये तो एक जासूसी नाटक है! 🤡

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    Disha Thakkar

    अगस्त 18, 2025 AT 20:20

    अच्छा तो अब भारत की ऊर्जा नीति को अमेरिकी राजनीति के लिए बलि चढ़ाया जाएगा? 🤔 ये जो टैरिफ लगाया गया, वो बिल्कुल बेकार है। अगर हम रूसी तेल नहीं लेंगे, तो अमेरिका के तेल के लिए भुगतान करना पड़ेगा, जो बिल्कुल असंभव है। ये टैरिफ तो बस एक शो-ऑफ है जिसका कोई असर नहीं। कोई भी बुद्धिमान देश अपनी जरूरतों के हिसाब से चलता है, न कि किसी के निर्देश पर।

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    Abhilash Tiwari

    अगस्त 19, 2025 AT 04:48

    ये टैरिफ देखकर मेरा दिल भर गया 😌 भारत ने अपने लोगों के लिए फैसला किया, न कि किसी देश के लिए। रूसी तेल सस्ता है, गरीब का डीजल सस्ता है, बिजली का बिल नहीं बढ़ता। अमेरिका को अपनी खुद की बातें ठीक करनी चाहिए, न कि दूसरों के जीवन को बर्बाद करना। ये भारत की शांति, दृढ़ता और बुद्धिमानी की कहानी है।

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    Anmol Madan

    अगस्त 20, 2025 AT 03:42

    अरे यार, इतना बड़ा विषय बना दिया 😅 लेकिन सच तो ये है कि रूसी तेल बहुत सस्ता है, और हम जो ले रहे हैं वो सिर्फ अपने घर के लिए है। अमेरिका को अपने तेल बेचने दो, हम तो बस जल्दी से अपनी कार भर लेंगे 😎

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    Shweta Agrawal

    अगस्त 21, 2025 AT 00:38

    मुझे लगता है भारत ने सही फैसला किया बस यही बात है अगर हम रूसी तेल नहीं लेंगे तो लोगों को ज्यादा पैसा देना पड़ेगा और ये बहुत गलत होगा अमेरिका की बातें तो वहीं रहने दो हम अपने देश के लिए सोचते हैं

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    raman yadav

    अगस्त 21, 2025 AT 16:37

    अरे भाई ये सब तो बस बातों का खेल है 😤 अमेरिका के पास तो अपना तेल बेचने के लिए कोई चांस नहीं बचा अब तो वो भारत पर झपटा क्योंकि हमने चीन के साथ दोस्ती कर ली और रूस के साथ ट्रेड कर लिया तो वो बोल रहा है 'अरे ये नहीं होगा' लेकिन हम क्या करें? जब तक तेल सस्ता है तब तक हम लेंगे और अगर वो टैरिफ लगाएगा तो हम उसके तेल को भी बाहर फेंक देंगे बस एक बात बताओ क्या अमेरिका ने कभी हमारे लिए कुछ किया है?

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    Ajay Kumar

    अगस्त 21, 2025 AT 22:08

    ये सब एक बड़ा धोखा है। अमेरिका ने ये टैरिफ नहीं लगाया, बल्कि ये एक ट्रिगर है जिससे वो भारत को अपनी बात मानने के लिए दबाव बना रहा है। अगर हम रूसी तेल बंद कर देंगे तो वो भारत को एक बड़ा डील देंगे? नहीं। वो बस एक नया बाहरी दुश्मन बनाना चाहते हैं ताकि अपने घर के लोगों को भ्रमित कर सकें। अगर ये टैरिफ असली होता तो चीन के ऊपर भी लगता। लेकिन चीन के ऊपर नहीं लगा क्योंकि वो अमेरिका के लिए बहुत बड़ा बाजार है। ये टैरिफ सिर्फ भारत के लिए है क्योंकि हम अभी तक उनके शिक्षा या टेक्नोलॉजी में नहीं आए हैं। ये एक छोटी सी जीत है जिसे वो बड़ा बना रहे हैं।

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    Chandra Bhushan Maurya

    अगस्त 22, 2025 AT 15:50

    इस टैरिफ के बाद जो भारतीय लोग रो रहे हैं, उन्हें बस याद दिलाना चाहता हूँ - हमने अमेरिका के लिए नहीं, अपने बच्चों के लिए फैसला किया है। रूसी तेल सिर्फ एक तेल नहीं, ये एक जीवन रक्षा है। जब दुनिया ने हमें बहिष्कृत करने की कोशिश की, तो हमने अपने आप को नहीं बहिष्कृत किया। हमने अपने दिमाग को बचाया। ये नहीं कि हम अमेरिका के खिलाफ हैं, बल्कि हम अपने लोगों के खिलाफ नहीं हैं। ये एक दिन ऐतिहासिक होगा।

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    Hemanth Kumar

    अगस्त 23, 2025 AT 09:40

    अमेरिकी टैरिफ के विरुद्ध भारत के निर्णय का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह एक व्यापारिक निर्णय नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय स्वार्थ के आधार पर लिया गया राजनीतिक निर्णय है। ऊर्जा सुरक्षा के लिए लागत-कुशल स्रोतों का चयन एक विकसित अर्थव्यवस्था की आवश्यकता है। रूसी तेल की उपलब्धता और विश्व बाजार में इसकी लागत के कारण, इस निर्णय को आर्थिक तर्कसंगतता के आधार पर समर्थित किया जा सकता है। अमेरिका की राजनीतिक अभिव्यक्ति इस तर्क को अनदेखा करती है, जो एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के विरुद्ध व्यवहार है।

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