SEBI के कड़े प्रस्ताव ने शेयर बाजार में मचाई हलचल
जब 2025 में सर्कुलेट हुई SEBI की स्टडी से यह खुलासा हुआ कि डेरिवेटिव्स मार्केट में 90% रिटेल ट्रेडर घाटे में हैं और कुल नुकसान ₹1.05 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है, तो हर कोई हैरान रह गया। इसी रिपोर्ट के बाद SEBI ने डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग, खासतौर पर ऑप्शंस में, रिटेल भागीदारी रोकने और बाजार की जोखिम भरी प्रवृत्तियों पर लगाम कसने के इरादे से नए सख्त नियमों का खाका तैयार किया।
इन प्रस्तावों में सबसे बड़ा बदलाव ऑप्शन पोजिशन को नगद हिस्सों (कैश पोजिशन) से जोड़ने वाले फॉर्मूले की चर्चा है। मतलब अब शेयर बाजार के ऑप्शन ट्रेडर मनमर्जी से बड़ी-बड़ी पोजिशन नहीं ले सकेंगे, बल्कि उनकी पकड़ नगद से ही तय होगी। साथ ही, शॉर्ट सेलिंग को बढ़ावा देने के लिए SEBI Stock Lending and Borrowing Mechanism (SLBM) को भी बढ़ाना चाहता है। ऐसे में ट्रेडर्स को अब अपनी रणनीति बदलनी ही होगी।

शेयरों में गिरावट और मिडलमैन का डर
SEBI के प्रस्तावों ने बाजार में तुरंत बेचैनी फैला दी। 8 जुलाई 2025 को BSE, CDSL, Angel One और 360 ONE WAM जैसी बड़ी फाइनेंशियल कंपनियों के शेयर 8-10% तक गिर गए। बड़े ब्रोकर और इंटरमीडियरी इस बदलाव से चिंतित हैं, क्योंकि डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग में रिटेल की भारी भागीदारी अब तक उनके मुनाफे की वजह रही है। अचानक सख्ती की वजह से उनके बिज़नेस मॉडल पर ही खतरा आ गया है।
इन गिरावटों को देखकर कई निवेशकों का आत्मविश्वास भी डगमगा गया। रिटेल इन्वेस्टर्स, जो कम पूंजी में प्योर ऑप्शन ट्रेडिंग कर कम समय में फायदा कमाना चाहते थे, अब असमंजस में हैं। बहुत से ऐसे लोग जो पिछले कुछ महीनों में ‘शेयर बाजार से जल्दी पैसा’ वाली आस में डेरिवेटिव्स की ओर भागे थे, अब उन्हें विकल्पों की दुनिया में नए नियमों का सामना करना होगा।
- SEBI का फोकस अब रिस्क कंट्रोल और पब्लिक प्रोटेक्शन पर है।
- डेरिवेटिव्स समेत ऑप्शंस ट्रेडिंग में प्रवेश कठिन हो सकता है।
- शेयर मार्केट में तेजी से होने वाले उतार-चढ़ाव का असर ब्रोकरेज कंपनियों और एक्सचेंज के रेवन्यू पर भी पड़ेगा।
साफ है, SEBI की नजर अब आम निवेशक के पैसे की सुरक्षा पर है। लेकिन रिफॉर्म्स के इस झटके का असर महसूस किया जा सकता है – न सिर्फ रिटेल निवेशकों, बल्कि पूरे वित्तीय सेक्टर पर। अभी तक ट्रेडिंग को आसान मानने वालों के लिए ये बड़ा अलार्म है कि बिना समझदारी के ट्रेडिंग, भारी नुकसान में बदल सकती है। नियम कड़े हैं, तो बाजार की चाल भी बदलनी ही पड़ेगी।