गुड फ्राइडे: इतिहास, परम्परा और आज का अंदाज़

गुड फ्राइडा ईसाई कैलेंडर की सबसे गंभीर तिथियों में से एक है। इस दिन माना जाता है कि यीशु मसीह ने अपने जीवन के अंतिम क्षण देखे, क्रूस पर चढ़ाए गए और शहीद हुए। इसलिए इसे ‘गुड’ कहा जाता है, क्योंकि यह दुःख के बाद नया आरम्भ—ईस्टर—का संकेत देता है। भारत में इस दिन का खास महत्व है, खासकर कोलकाता, चेन्नई और दक्कन के कई शहरों में जहाँ बड़ी‑बड़ी चर्चें हैं।

भारत में गुड फ्राइडे कैसे मनाते हैं?

बहुतेरे शहरों में सुबह 6 बजे से ही प्रार्थना सभा शुरू होती है। लोग काले कपड़े पहनते हैं, चुप्पी बनाए रखते हुए सेंट्रल चर्च के चारों ओर परेड करते हैं। कई जगहें विशेष रूप से शोक गीत गाकर या क्रूस की नकल बनाकर श्रद्धा व्यक्त करती हैं। कोलकाता में विंडसर रोड पर ‘गुड फ्राइडे रैली’ बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ लाखों लोगों का जमावड़ा देखते ही बनता है। दक्कन के कुछ भागों में लोग रात भर जलते हुए मशालें लेकर जुलूस निकालते हैं, जो शांति और आशा का प्रतीक माना जाता है।

गुड फ्राइडे से जुड़ी मुख्य प्रथा

1. भजन एवं प्रार्थना: चर्चों में विशेष भजन गाए जाते हैं, जिसमें मसीह की पीड़ा को याद किया जाता है।
2. रोकिंग बॉल: कुछ समुदायों में लोग ‘रोकिंग बॉल’ नामक ध्वनि वाले उपकरण से शोक व्यक्त करते हैं।
3. भोजन पर प्रतिबंध: कई ईसाई इस दिन मांस नहीं खाते और केवल हल्का भोजन लेते हैं, जैसे कि ब्रेड या फल।

इन रीति‑रिवाज़ों का मकसद शोक को गहरा करना नहीं, बल्कि मन को साफ़ करके आशा के साथ आगे बढ़ना है। गुड फ्राइडे की भावना हमें याद दिलाती है कि कठिन समय में भी धैर्य रखना चाहिए और आने वाले ईस्टर में खुशी की तैयारी करनी चाहिए।

यदि आप पहली बार इस दिन का अनुभव कर रहे हैं, तो बस एक शांत जगह ढूंढें, थोड़ी देर के लिए मौन रखें और अपनी मन की बात प्रार्थना में डालें। यही सबसे सच्चा तरीका है गुड फ्राइडे को सम्मानित करने का।