आपने शायद समाचारों में इथेनॉल शब्द कई बार सुना होगा, खासकर जब पेट्रोल‑डीज़ल में इसका मिश्रण बढ़ाने की बात आती है। लेकिन असल में इथेनॉल क्या है? सरल शब्दों में कहें तो यह एक अल्कोहल है, जो शर्करा या स्टार्च वाले पौधों से बनता है – जैसे गन्ना, मक्का, जौ और टरबूज के बीज।
इसे बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल नहीं है: पहले फ़सल को कुट कर रस निकाला जाता है, फिर उसे ख़मीर (yeast) के साथ फर्मेंट किया जाता है. फर्मेंटेशन से शराब बनती है और बाद में डिस्टिलेशन से इथेनॉल अलग हो जाता है। भारत में सबसे ज़्यादा गन्ना‑इथेनॉल तैयार किया जाता है क्योंकि हमारे खेतों में गन्ना बहुत उगता है.
सबसे बड़ी बात इथेनॉल के ईंधन में प्रयोग की है। सरकार ने 2022‑23 बजट में कहा था कि पेट्रोल में कम से कम 10% इथेनॉल मिलाना अनिवार्य होगा. इसका फायदा दो तरह का है – तेल आयात पर निर्भरता घटती है और कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है. एक लीटर पेट्रोल की कीमत में थोड़ा‑बहुत अंतर दिखेगा, लेकिन पर्यावरण को बड़ा लाभ मिलेगा.
ईंधन के अलावा इथेनॉल कई घरेलू कामों में आता है: सफ़ाई एजेंट, सॉल्वेंट और कुछ औद्योगिक प्रक्रियाओं में. छोटे स्तर पर लोग इसे हाउसहोल्ड क्लीनर या पेस्ट्री बनाने में भी इस्तेमाल करते हैं.
इथेनॉल उत्पादन के लिए कृषि बुनियादी ढाँचा तैयार है, लेकिन अभी भी कुछ बाधाएँ हैं. सबसे पहले फसल‑से‑ईंधन की कीमत पर निरंतरता नहीं है – जब गन्ना की कीमतें ऊँची होती हैं तो किसानों को इथेनॉल के लिए बेचने में हिचकिचाहट रहती है. दूसरी समस्या यह है कि कई राज्य अभी तक पर्याप्त डिस्टिल्री नहीं बनाते, जिससे उत्पादन क्षमता सीमित रहती है.
इन समस्याओं का हल भी हमारे पास है. सरकार ने किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने की घोषणा की है, ताकि वे गन्ना सीधे इथेनॉल इकाइयों में बेच सकें. साथ ही निजी निवेशकों को डिस्टिल्री बनाने के लिए टैक्स छूट और सस्ती लोन की पेशकश की जा रही है. अगर ये कदम सही दिशा में चले तो अगले पांच सालों में भारत दुनिया का तीसरा बड़ा इथेनॉल उत्पादक बन सकता है.
एक और दिलचस्प पहलू यह है कि इथेनॉल मिश्रण से वाहनों के इंजन पर कम घिसाव होता है, जिससे रख‑रखाव खर्च घटता है. मोटर वाहन मालिकों को यह छोटा‑छोटा बचत अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन दीर्घकालिक में इसका असर बड़ा हो सकता है.
तो, अगर आप अगले बार गैस स्टेशन पर इथेनॉल‑ब्लेंडेड पेट्रोल देखेंगे तो समझ लीजिए कि यह सिर्फ एक नया लेबल नहीं, बल्कि हमारी ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण दोनो के लिए एक कदम आगे है. इस बदलाव को अपनाने में हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है – चाहे वह किसान हो जो गन्ना उगाए, या ड्राइवर जो इंधन खरीदता है.
समझदार निर्णय लेने के लिये हमेशा नवीनतम कीमत और मिश्रण प्रतिशत देखना न भूलें. इस तरह आप न सिर्फ अपनी जेब बचाएँगे बल्कि साफ़ हवा में भी योगदान देंगे.
गोदावरी बायोरिफाइनरीज, एकीकृत एग्रीबिजनेस कंपनी, अपने आई.पी.ओ. के लिए तैयार है। कंपनी का वित्त इथेनॉल की बिक्री पर बहुत अधिक निर्भर है, जो उसके राजस्व का करीब 30% है। इस निर्भरता को मुख्य कमजोरी माना जाता है। कंपनी के विकास की संभावनाएं इथेनॉल की बढ़ती मांग और सरकार की इथेनॉल मिश्रण नीतियों पर निर्भर करती हैं। निवेशकों को इसके विकास के साथ जुड़े जोखिमों का ध्यान रखना चाहिए।