आपने शायद दीपावली के बाद एक और बड़े त्यौहार का नाम सुना होगा – कोजागिरी पूर्णिमा. ये पर्व उत्तर भारत, खासकर बिहार में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। लोग इस दिन माँ काली की पूजा करते हैं, घर‑घर में दीप जलाते हैं और गाने बजाते हैं। मानते हैं कि इस रात अंधेरे के बाद रोशनी आती है, इसलिए इसे ‘कोजागिरी’ यानी जागरण कहा गया.
कोजागिरी का मूल प्राचीन पौराणिक कहानियों में मिलता है। माना जाता है कि माँ काली ने असुरों को हराने के बाद अपने शत्रुओं से बचाव की शक्ति इस रात को दी थी. इसलिए लोग इस दिन माँ को जगाते हैं, गाना‑गाता और नाचते हैं. कुछ स्थानीय कहानी बताती है कि किसान जब फसल कटाई के बाद थके होते थे, तो इस जागरण से उन्हें नई ऊर्जा मिलती थी.
2025 में कोजागिरी पूर्णिमा 23 अक्टूबर को पड़ेगी. अगर आप इस दिन को खास बनाना चाहते हैं तो इन बातों पर ध्यान दें:
अगर आप शहर से गाँव जा रहे हैं तो स्थानीय बाजार में मिलने वाले ताजे फल और दाल‑चावल का उपयोग करके भोग तैयार करें. अक्सर लोग इस दिन घी‑मक्खन, सरसों के तेल और सौंफ की महक को साथ मिलाकर घर में खुशबू फैलाते हैं.
ध्यान रखने वाली बात यह है कि पूजा में शोर‑गुल से बचें, ताकि पड़ोसी भी आराम से इस पावन माहौल का आनंद ले सकें. अगर आप पहली बार कर रहे हैं तो स्थानीय बुजुर्गों से सलाह लें; वे आपको सही मंत्र और विधि बता देंगे.
कोजागिरी सिर्फ एक त्यौहार नहीं, यह लोगों को मिल‑जुलकर खुश रहने की सीख भी देता है. जब हम सब साथ में गीत गाते, लाइट जलाते और मिठाई बाँटते हैं तो दिलों में खुशी का उजाला फैलता है.
तो इस साल 23 अक्टूबर को अपनी योजनाएँ बनाइए, परिवार के साथ मिलकर कोजागिरी पूर्णिमा की तैयारियाँ शुरू कीजिए और इस रात को यादगार बनाइए. आप भी अपने अनुभव सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते हैं, ताकि दूसरों को भी इस अद्भुत त्यौहार का पता चले.
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, 16 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन का महत्व हिंदू धर्म में विशेष है, क्योंकि यह माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन के धार्मिक अनुष्ठान में खीर बनाना और चाँदनी में रखना शामिल है। यह पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में पूजा-पाठ, दान-पुण्य और सामाजिक समागम के साथ मनाया जाता है।