संयुक्त राज्य अमेरिका हर चार साल में राष्ट्रपति चुनता है। इस बड़े वोटिंग इवेंट को अक्सर ‘US election’ कहा जाता है और यह दुनियाभर की राजनीति, आर्थिक नीति और सुरक्षा रणनीति पर असर डालता है। अगर आप भारत में रह रहे हैं तो भी ये चुनाव आपके रोज़मर्रा के जीवन से जुड़ते हैं – चाहे वो ट्रेड वॉल्यूम हो या विदेश नीति का मोड़।
पहले समझें कि अमेरिकी मतदान कैसे चलता है। देश 50 राज्यों में बाँटा गया है, हर राज्य की जनसंख्या के आधार पर एलेक्टोरल कॉलेज (Electoral College) नामक एक सिस्टम काम करता है। कुल 538 इलेक्ट्रॉली टर्स होते हैं और जीतने वाले को कम से कम 270 चाहिए। वोटर सीधे राष्ट्रपति नहीं चुनते; वे अपने राज्य के प्रतिनिधियों को चुनते हैं, जो फिर एलेक्टोरल कॉलेज में अपना वोट डालते हैं.
2024 में दो बड़े पार्टीज़ – डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन – की तरफ से प्रमुख दावेदार उभरे हैं। डेमोक्रेट्स का फोकस अक्सर जलवायु बदलाव, स्वास्थ्य सेवा सुधार और सामाजिक समानता पर रहता है, जबकि रिपब्लिकन आर्थिक विकास, कर कटौतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं. प्रत्येक उम्मीदवार अपने कैंपेन में ‘बिल्डिंग बैक द अमेरिकन ड्रीम’ या ‘अमेरिका फर्स्ट’ जैसे नारे इस्तेमाल करता है। इन नारों के पीछे की नीति अक्सर अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते, टेक कंपनियों पर टैक्स और विदेश में सैन्य उपस्थिती से जुड़ी होती है.
यदि आप भारत में निवेशकों या एक्सपोर्ट‑इम्पोर्ट व्यापारी हैं तो देखें कि कौन सा उम्मीदवार अमेरिकी बाजार को खुला रखेगा, किसकी नीतियाँ भारतीय स्टॉक्स के लिए अनुकूल होंगी और किसका वाणिज्य नीति आपके व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है।
अमेरिका-भारत संबंध कई स्तरों पर चलते हैं – रक्षा सहयोग, हाई‑टेक साझेदारी, ऊर्जा आयात‑निर्यात. चुनाव जीतने वाला राष्ट्रपति इन क्षेत्रों में नई समझौते कर सकता है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई प्रोटेक्टिविस्ट नीति अपनाता है तो भारतीय IT कंपनियों को अमेरिकी बाजार में चुनौतियाँ मिल सकती हैं; वहीं खुली ट्रेड पॉलिसी से भारत की एक्सपोर्ट्स को बूस्ट मिलेगा.
साथ ही, अमेरिकी विदेशी मदद (FDI) पर भी असर पड़ेगा। निवेशक अक्सर राजनीतिक स्थिरता देख कर निर्णय लेते हैं. एलेक्टोरल कॉलेज में जीतने वाले पार्टी के आर्थिक दृष्टिकोण के आधार पर भारतीय स्टार्टअप्स और बड़े उद्योग दोनों को फंडिंग या नियामक माहौल बदल सकता है.
तो, कैसे रखें नज़र?
अंत में यही कहूँगा – अमेरिकी चुनाव सिर्फ अमेरिकी जनता का मुद्दा नहीं, यह एक वैश्विक लहर है जो भारत के व्यापार, सुरक्षा और टेक इकोसिस्टम को हिलाता-डुलाता रहता है। इसलिए इसे समझना और ट्रैक रखना आपके भविष्य की योजना बनाते समय फायदेमंद रहेगा.
अमेरिकी स्टॉक बाजार में सोमवार को भारी गिरावट दर्ज की गई, जिसमें डॉव जोन्स ने लगभग 250 अंक खो दिए। यह सप्ताह संभावित बाजार उत्प्रेरकों से भरा हुआ है, जिसमें राष्ट्रपति चुनाव और फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति की घोषणा शामिल हैं। यह घटनाएं बाजार की दिशा को बदल सकती हैं।