अगर आप स्टॉक मार्केट या कमोडिटी की दुनिया में नज़र रख रहे हैं, तो ‘डेरिवेटिव्स’ शब्द आपको अक्सर सुनाई देगा. लेकिन असल में यह शब्द सिर्फ एक जटिल वित्तीय उपकरण नहीं, बल्कि आपका जोखिम‑प्रबंधन साथी भी हो सकता है. सरल शब्दों में कहें तो डेरिवेटिव्स वो अनुबंध होते हैं जिनकी कीमत किसी बेसिक एसेट (जैसे शेयर, सोना या तेल) से जुड़ी होती है.
इसे एक उदाहरण से समझते हैं: मान लीजिए आपके पास सोने की कीमत बढ़ने का भरोसा है, लेकिन अभी पैसा नहीं है खरीदने के लिए. आप फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट ले सकते हैं जिसमें तय तारीख पर निश्चित मूल्य पर सोना खरीदने या बेचने का अधिकार (या कर्तव्य) होता है. अगर कीमत आपकी उम्मीद के मुताबिक बढ़ी, तो आपको फायदा होगा; वरना नुकसान.
फ्यूचर्स: ये मानक अनुबंध होते हैं जो एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं. हर फ्यूचर एक तय तिथि और कीमत रखता है, इसलिए ट्रांज़ैक्शन साफ़-साफ़ दिखता है.
ऑप्शन्स: यहाँ दो विकल्प होते हैं – कॉल (खरीदने का अधिकार) और पुट (बेचने का अधिकार). आप प्रीमियम के बदले इनका हक खरीदते हैं, पर आपको अनिवार्य रूप से अनुबंध पूरा करना नहीं पड़ता.
स्वैप्स: ये आमतौर पर दो पक्षों के बीच होते हैं जहाँ वे ब्याज दर या मुद्रा प्रवाह जैसे कैश फ्लो को बदलते हैं. स्वैप का उपयोग अक्सर बड़े कंपनियाँ अपने ऋण की लागत घटाने में करती हैं.
फ़ॉरवर्ड्स: फ्यूचर्स जैसा ही, लेकिन एक्सचेंज के बाहर यानी ओवर‑दि‑काउंटर (OTC) ट्रेड होते हैं. ये कस्टमाइज़्ड होते हैं और कम तरलता वाले हो सकते हैं.
1. जोखिम समझें: डेरिवेटिव्स हाई लीवरेज दे सकते हैं, यानी छोटे पैसे से बड़ी पोजीशन ले सकते हो. इसलिए नुकसान भी तेज़ी से बढ़ सकता है.
2. मार्जिन कॉल का ध्यान रखें: अगर आपका पोजीशन घाटे में जाता है तो ब्रोकरेज अतिरिक्त मार्जिन मांग सकती है. समय पर फंड नहीं रहे तो पोजीशन बंद हो जाएगा.
3. बाजार की खबरें पढ़ें: आर्थिक आँकड़े, RBI के रेपो रेट या विदेश में तेल की कीमत बदलना डेरिवेटिव्स को सीधे असर करता है. इसलिए रोज़ाना अपडेटेड समाचार देखना फायदेमंद रहता है.
4. सही ब्रोकरेज चुनें: कम शुल्क, तेज़ एक्सीक्यूशन और भरोसेमंद सपोर्ट वाला प्लेटफ़ॉर्म आपके ट्रेडिंग अनुभव को आसान बनाता है.
5. लॉस लिमिट सेट करें: स्टॉप‑लोस् या ट्रेलिंग‑स्टॉप जैसे ऑर्डर डालकर आप अपने नुकसान को सीमित कर सकते हैं, जबकि मुनाफे की संभावना बरक़रार रहती है.
आजकल कई भारतीय निवेशकों ने डेरिवेटिव्स में कदम रखा है क्योंकि यह उन्हें पोर्टफ़ोलियो का जोखिम कम करने या अतिरिक्त आय बनाने की सुविधा देता है. लेकिन याद रखें, बिना समझे कोई भी वित्तीय उपकरण लेना सिर्फ जुआ बन सकता है. पहले छोटे पोजीशन से शुरुआत करें, अपनी रिस्क प्रोफ़ाइल को जानें और फिर धीरे‑धीरे स्केल अप करें.
अगर आप डेरिवेटिव्स के बारे में और गहराई से सीखना चाहते हैं तो हमारी साइट पर उपलब्ध विस्तृत लेख, केस स्टडी और विशेषज्ञों की राय पढ़ सकते हैं. सही जानकारी और सावधानी के साथ ही आप इस बाजार में सफलता पा सकते हैं.
SEBI के नए डेरिवेटिव्स नियमों के प्रस्ताव से शेयर बाजार में हलचल मच गई, BSE और CDSL के शेयर 10% तक गिरे। एक स्टडी में सामने आया कि 90% रिटेल ट्रेडर नुकसान में रहे और 2025 में ₹1.05 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। अब मार्केट में विकल्प ट्रेडिंग पर सख्त नियम और शॉर्ट सेलिंग को बढ़ावा देने की बात हो रही है।