हर साल कई नवजात शिशु जन्म के पहले कुछ घंटों या दिनों में चल बिखर जाते हैं। यह सिर्फ आँकड़े नहीं, बल्कि परिवार की जिंदगी में बड़ा झटका होता है। अगर आप माँ या दादी हों, तो इस लेख को पढ़कर कारण समझें और बचाव के कदम जानें।
सबसे आम वजहें हैं – समय से पहले जन्म, जन्म के दौरान संक्रमण, कम वजन और सही देखभाल न मिलना। कई बार दादी‑दादा या दाई को नहीं पता होता कि बच्चा कब ठीक है और कब समस्या है। अगर शिशु का सिर हिलता है, लगातार रो रहा है या साँस लेने में तकलीफ दिखती है तो तुरंत डॉक्टर को बुलाएँ।
डायबिटीज़ वाली माँ के बच्चे अक्सर जल्दी जन्म लेते हैं और उनका वजन कम रहता है। ऐसी स्थिति में अस्पताल में रहना जरूरी होता है। रक्त की कमी, हाइड्रेशन न होना या पीलिया भी खतरा बनते हैं। हर कारण का इलाज अलग‑अलग है, इसलिए डॉक्टर को पूरी जानकारी दें।
पहला कदम – गर्भावस्था में नियमित चेक‑अप रखें। रक्त जांच, अल्ट्रासाउंड और पोषण सलाह से कई समस्याओं का पता चल जाता है। दूसरा – डिलीवरी के समय सही सुविधा चुनें। बड़े अस्पतालों या अच्छे दर्जे की मातृ क्लिनिक में डॉक्टर मौजूद होते हैं जो आपातकाल में तुरंत मदद कर सकते हैं।
तीसरा, बच्चे को जन्म के बाद साफ‑सुथरे हाथों से संभालें। नयी कपड़े धुले हुए हों और बिस्तर साफ़ हो। दूध पिलाने वाले माँ को पर्याप्त पोषण मिले, ताकि वह बच्चे को ठीक‑ठाक दूध दे सके। चौथा – अगर घर में कोई भी अस्वस्थता (जैसे टायफाइड, कंजंक्टिवाइटिस) दिखे तो तुरंत इलाज कराएँ; ये संक्रमण नवजात में जल्दी फैलते हैं।
सिर्फ़ मेडिकल पहलू नहीं, बल्कि भावनात्मक समर्थन भी ज़रूरी है। बच्चा खोने के बाद परिवार अक्सर शोक और गुस्सा दोनों महसूस करता है। ऐसे समय में भरोसेमंद दोस्त या काउंसलिंग सत्र मददगार होते हैं। याद रखें कि शोक का कोई सही‑गलत टाइम नहीं होता; आप जो भी फ़ील करते हैं, वो ठीक है।
यदि बच्चा नहीं बचता, तो कानूनी प्रक्रिया को समझना जरूरी है। अस्पताल में मौत की रिपोर्ट बनवाएँ, डॉक्टर से लिखित कारण माँगें और यदि किसी लापरवाही का शक हो तो पुलिस में केस दर्ज़ कर सकते हैं। यह कदम भविष्य में दूसरों के लिए भी सुरक्षा का काम करता है।समय पर सही जानकारी और तेज़ कार्रवाई ही नवजात बच्चों की मौत को रोक सकती है। नियमित जांच, साफ‑सफाई और तुरंत डॉक्टर से संपर्क रखने से बहुत कुछ बदल सकता है। अगर आप किसी स्थिति में हों तो खुद को दोषी मत ठहराएँ – सीखें, आगे क्या करें और अपने परिवार को सशक्त बनायें।
उत्तर प्रदेश के झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में नवजात गहन चिकित्सा इकाई में लगी भीषण आग ने 10 नवजात शिशुओं की जान ले ली। इस घटना की तुलना 2017 के गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज की त्रासदी से की जा रही है, जहां ऑक्सीजन की कमी के कारण 60 से अधिक बच्चों की मृत्यु हो गई थी। राज्य सरकार ने घटना की जांच के लिए एक समिति गठित की है और पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे की घोषणा की गई है।