अगर आप शेयर, म्यूचुअल फंड या जमीन‑जायदाद बेचते हैं तो आपको पूँजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन टैक्स) देना पड़ता है। यह टैक्स आपके निवेश पर मिलने वाले मुनाफ़े पर लगता है, न कि मूलधन पर। समझने में आसान बनाते हैं – जब आप कोई एसेट खरीदते‑बेचते हैं और बिक्री कीमत खरीद कीमत से ज्यादा होती है, तो अंतर को कर योग्य माना जाता है.
कर की दो मुख्य श्रेणियां हैं: लघुकालिक (short‑term) और दीर्घकालिक (long‑term)। शेयर या इक्विटी फंड में 1 साल से कम रखने पर लाभ को लघुकालिक पूँजीगत लाभ कहा जाता है, जिसपर 15% टैक्स लगते हैं। अगर आप एसेट 1 साल (संपत्ति के लिए 2 साल) से ज्यादा रखे तो वह दीर्घकालिक बनता है और इसकी दर आयकर स्लैब पर निर्भर करती है – आमतौर पर 10% या 20% तक.
रियल एस्टेट जैसे संपत्तियों में, अगर आप जमीन को 2 साल से कम समय में बेचते हैं तो लघुकालिक माना जाता है और सामान्य आयकर स्लैब लागू होता है। दो साल से अधिक रखने पर दीर्घकालिक लाभ के लिए 20% (सेक्शन 54EC) या 10% (सर्विसेज़ सेक्टर) जैसी विशिष्ट छूटें मिल सकती हैं.
आयकर अधिनियम कई छूट देता है। उदाहरण के लिए, हर वित्तीय वर्ष में आप ₹1 लाख तक का दीर्घकालिक पूँजीगत लाभ कर मुक्त रख सकते हैं (सेक्शन 112A)। अगर आप एसेट को बेचने से पहले 3 साल की अवधि में दोहराते निवेश करते हैं तो सेक्शन 54F के तहत रियल एस्टेट पर भी टैक्स छूट मिलती है.
सिक्योरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) भुगतान होने पर लघुकालिक लाभ पर 15% की निश्चित दर लागू होती है, जिससे गणना आसान हो जाती है. इसी तरह, यदि आप इक्विटी‑डिबेंचर या एंट्री लेवल फंड में निवेश कर रहे हैं तो भी STT का असर आपके टैक्स बिल को घटा सकता है.
1️⃣ ITR फ़ॉर्म चुनें: अगर आपका केवल पूँजीगत लाभ ही दिखाना है, तो ITR‑2 या ITR‑3 पर्याप्त होते हैं. 2️⃣ ट्रांजैक्शन की सूची बनाएं: खरीद‑बिक्री के डेट, संख्या, कीमत और STT का विवरण रखें. ब्रोकरेज प्लेटफ़ॉर्म अक्सर CSV फ़ाइल दे देते हैं – उसे सीधे अपलोड कर सकते हैं.
3️⃣ लाभ/हानि निकालें: लघुकालिक और दीर्घकालिक लाभ को अलग‑अलग जोड़ें, फिर लागू दर से टैक्स का अनुमान लगाएं. हानियों को भविष्य में सेटऑफ़ किया जा सकता है.
4️⃣ छूट दर्ज करें: सेक्शन 54EC/54F आदि की छूटों को सही जगह भरें; नहीं तो आपको अनावश्यक टैक्स देना पड़ेगा.
5️⃣ भुगतान और वैरिफ़िकेशन: टैक्स देनदारी के अनुसार ऑनलाइन भुगतान करें, फिर ITR वैरिफ़ाई करें – ए-ओटीपी या डिजिटल सिग्नेचर से जल्दी हो जाता है.
अगर आप पहली बार कर रिटर्न भर रहे हैं तो डरने की जरूरत नहीं. कई पोर्टल्स में ‘टैक्स कैलकुलेटर’ मौजूद है, जो आपके ट्रांजैक्शन के आधार पर टैक्स का अनुमान तुरंत दिखा देता है.
• सभी ट्रेडिंग अकाउंट स्टेटमेंट रखें – आयकर विभाग रिटर्न ऑडिट में माँग सकता है.
• अगर आप फॉर्म‑24B (TDS) प्राप्त कर रहे हैं तो उसे भी ITR में दर्शाना न भूलें.
• दीर्घकालिक लाभ पर अगर आपने 10% टैक्स डिडक्टेड टॅक्स (TDS) दिया हो, तो रिटर्न में क्लेम करके रिफ़ंड ले सकते हैं.
पूँजीगत लाभ कर का सही‑से‑गणना और समय पर फ़ाइलिंग न केवल दण्ड से बचाती है बल्कि आपकी निवेश रणनीति को भी मजबूत बनाती है. अब जब आप बेसिक समझ गए हैं, तो अगले वित्तीय वर्ष में इन टिप्स को अपनाएँ और टैक्स की चिंता दूर रखें.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट की घोषणा ने भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट लाई। S&P BSE सेंसेक्स 80,000 से नीचे गिर गया, जबकि NSE निफ्टी भी गिरी। पूँजीगत लाभ करों में वृद्धि इस गिरावट का प्रमुख कारण बना। इससे निवेशक असमंजस में हैं और मुख्य रूप से एलारसेंट एंड टुब्रो और अन्य पीएसयू शेयरों पर प्रभाव पड़ा।