वायनाड भूस्खलन: हर साल उठते प्रलय के बादल
केरल के वायनाड जिले में हाल ही में आई विनाशकारी भूस्खलन ने स्थानीय जनजीवन को झकझोर दिया है। यह घटना 30 जुलाई, 2024 को हुई, जिसमें कम से कम 93 लोगों की मौत हो चुकी है, और सैकड़ों लोग मलबे में फंसे होने की आशंका है। इस विध्वंस का मुख्य कारण भारी वर्षा को माना जा रहा है जिसने विशाल भूभाग को मलबे के नीचे दबा दिया। इसका असर इतना भयावह था कि बचाव दलों के लिए प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचना मुश्किल हो गया।
केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (केएसडीएमए) ने तुरंत फायरफोर्स और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) की टीमों को राहत कार्यों में लगाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के परिवारों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट की और प्रत्येक परिवार को लगभग $2,388 की क्षतिपूर्ति देने की घोषणा की।
मानसून और भूस्खलन का चोली-दामन का साथ
भूस्खलन और बाढ़ केरल में मानसून के दौरान एक सामान्य दृश्य हैं, जो हर साल जून से सितंबर के बीच आते हैं। मानसून की भारी बारिश इन प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियां जैसे भूमि उपयोग में परिवर्तन भी इन समस्याओं को और गंभीर बना रही हैं।
हालांकि, भौगोलिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान और उनकी सुरक्षा को लेकर कई बार प्रयास हुए हैं, किंतु उन्हें कार्यान्वित करना एक चुनौती बना हुआ है। संघीय सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति ने 37% पश्चिमी घाट क्षेत्र को इको-संवेदनशील जोन घोषित करने की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य सरकारों और स्थानीय निवासियों के विरोध के कारण इन सिफारिशों को कभी अमल में नहीं लाया गया।
स्थानीय जनजीवन पर भूस्खलन का प्रभाव
वायनाड और इसके जैसे अन्य जिले जो भूस्खलन से प्रभावित होते हैं, वहां के स्थानीय निवासियों का जीवन हर बार गंभीर संकट में पड़ता है। उनके घर, उनकी फसलें, उनका जीविका स्रोत सब कुछ कुछ ही पलों में नष्ट हो जाता है। बचाव कार्यों में भी कई बार देरी होती है जिससे नुकसान और बढ़ जाता है।
प्राकृतिक आपदाओं का यह चक्र अक्सर उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर कर देता है। वे अपनी जमीनों से विस्थापित हो जाते हैं, और इन सबका असर उनकी आर्थिक स्थिति पर भी पड़ता है। हर साल इनके पुनर्वास और पुनर्निर्माण के कार्यों में विशाल धनराशि खर्च होती है, लेकिन फिर भी स्थिति वही रहती है।
पर्यावरण परिवर्तन और सुरक्षा कदम
इन भूस्खलनों को रोकने के लिए उत्तरदायी प्राधिकरणों को न केवल संरचनात्मक उपायों में सुधार की आवश्यकता है, बल्कि दीर्घकालिक पर्यावरणीय और विकासीय योजनाएं भी बनानी होंगी। वृक्षारोपण, स्थिर जल संसाधन प्रबंधन, उचित भूमि उपयोग के नियम और पंचायत स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम इस दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
इसके अलावा, स्थानीय सरकारों को संघीय सिफारिशों को मान्य करते हुए पारिस्थितिकीय संवेदनशील जोनों की सुरक्षा को अनिवार्य बनाना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि न केवल पर्यावरण सुरक्षित है, बल्कि स्थानीय जनजीवन भी सुरक्षित हो।
निलय और भविष्य की संभावनाएं
वायनाड और अन्य जिलों में होने वाले भूस्खलनों पर रोक लगाने के लिए एक सम्यक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। केवल सरकारी प्रयास ही नहीं, बल्कि स्थानीय निवासियों की भी सक्रिय भागीदारी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। आपदा प्रबंधन की योजनाओं का सही मात्रा में क्रियान्वयन और प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण रोकने के प्रयासों से ही हम भविष्य में इस विनाशक आपदा से बच सकते हैं।